पुस्तक बनाम ईपुस्तक (Printed Books vs Ebooks) चर्चा की पहली कड़ी में मैंने यह इंगित किया था कि कैसे मुद्रित पुस्तकों का अस्तित्व आने वाले समय में बना रहेगा। प्रस्तुत है इस लेख की दूसरी तथा अंतिम कड़ी जो ईबुक के लाभ को चिन्हित करता है।

ईबुक (या ईपुस्तक) को लेकर हम जैसे पाठक कई मायनों में असहज महसूस करते हैं। मुद्रित पुस्तकों के साथ जो जुड़ाव है, उनके कारण ईबुक्स की अस्वीकृति प्रौढ़ और परंपरागत पाठकों में सदा से बनी हुई है।
परन्तु ईबुक्स के भी अपने कुछ लाभ है जिन्हें लेकर पाठकों की एक नयी नस्ल तैयार प्रतीत होती है – Hybrid Readers! ये वो पाठक हैं जो मुद्रित पुस्तकों का स्थान ईपुस्तकों तो नहीं देना चाहते, परन्तु किसी ख़ास परिस्थिति के लिए ebooks या ereader अपने साथ रखना चाहते हैं – भले ही वह अतिरिक्त प्रति क्यों न हो!
व्यक्तिगत तौर पर निम्न चुनिंदा कारणों से मैं भी हाइब्रिड पाठक ही हूँ!
जानिए कैसे आम धारणा के विपरीत और किस दृष्टि से ईबुक भी पाठकों के बीच अपनी पैठ बना रहा है।
1. जहाँ भी जाएँ – साथ ले जाएँ

किसी सफर पर जाने से पहले मेरी सबसे बड़ी दुविधा यही होती है कि इस बार कौन सी पुस्तक अपने साथ ले चलूँ – पुरानी जो अब तक नहीं पढ़ी या नई प्रतियाँ जो गत दिवस आई थीं? पौराणिक या सामाजिक? उपन्यास या लघु कथा संकलन? रचनावलियों का क्या करूँ? यात्रा के वक्त किसी और पुस्तक का मूड बन गया जो घर पर छोड़ आया था तो? जाने से पहले इन सवालों को लेकर मैं अपनी अलमारी के सामने मूँह बाए खड़ा रहता हूँ और अलमारी मेरे सामने।
फिर अक्कड़-बक्कड़ खेलकर तो पुस्तकों का चयन तो नहीं कर सकते न?
इन ‘विषम’ परिस्थितियों में ebooks और ereader हमसफर बनकर उभरते हैं – यात्रा में बिना अतिरिक्त बोझ के!
2. तमसो मा ज्योतिर्गमय

रेल के सफर में मैं हमेशा एक दुर्भाग्य साथ लेकर चलता हूँ। सामने वाले बर्थ पर ज्यादातर वही चाचा मिलेंगे जिन्हें 9 बजे के आस-पास ही नींद आने लगती है। और नींद भी ऐसी जिसकी दुश्मनी कम्पार्टमेंट की बत्ती से सदा रही है। सफर के शिष्टाचार को अपना प्रारब्ध मानकर एक दो बार मैंने मोबाइल की रोशनी में कुछ पत्रिकाएँ ख़त्म की है। परन्तु पूरी एक पुस्तक के लिए ऐसे अपनी आँखें फोड़ना कष्टकारक है और व्यवहारिक भी नहीं।
ईबुक्स के साथ ऐसी कोई समस्या आड़े नहीं आती। अधिकांश ईरीडर रोशनी वाली स्क्रीन से लैस होते हैं जो अँधेरे में पढ़ने में सहायक है। यही नहीं, घर पर भी अगर सोने के समय कुछ पढने का मन बना तो अपने साथी के नींद में बिना खलल डाले अध्ययन जारी रख सकते हैं – अँधेरे में!
3. सजिल्द या अजिल्द

मुझे किसी भी पुस्तक का सजिल्द संस्करण बेहद पसंद है और उपलब्ध होने पर प्रयास भी रहता है कि वही संस्करण लूँ। परन्तु अधिकांशतः दोनों संस्करणों के बीच मूल्यों में अत्यंत फर्क होता है। कभी-कभी लगभग दोगुना। अब सामने यक्ष प्रश्न आ जाता है कि अपनी सनक को हवा दूं या उपयोगिता को। निर्धारित बजट में आया तो ठीक नहीं तो पेपरबैक से ही काम चलाना पड़ता है।
शुक्र है कि ईबुक विभिन्न संस्करणों में नहीं आता और कई बार मुद्रित संस्करण से कम मूल्यों में मिल जाता है। दुविधा की कोई बात नहीं!
4. समझदार संगत

अगर कोई वाक्य समझ न आए तो कोई समस्या नहीं। अगर किसी शब्द का मतलब नहीं पता तो एक स्पर्श से शब्दकोष हाजिर हो जाता है। यही नहीं, किसी रिपोर्ट अथवा घटना को पढ़ते वक़्त उसकी अतिरिक्त जानकारी चाहिए तो वह भी मुहैया हो जाता है (weblookup तथा विकिपीडिया की उपस्थिति)। यही नहीं, एक साथ कई बुकमार्क और मनचाहे रंग से किसी भी वाक्य या शब्द को अंकित कर सकते हैं (जिसमे मनचाहा बदलाव कभी भी कर सकते हैं)। अगर पुस्तक में कुछ शब्द या वाक्य ढूंढना पड़ा तो पन्ने पलटने की भी आवश्यकता नहीं – सर्च की सुविधा है न!
एक समझदार सहायक!
5. ईबुक – त्वरित वितरण एवं प्राप्ति

मैं उन व्यग्र व्यक्तियों में से हूँ जो पुस्तकों का ऑनलाइन आर्डर देने के बाद ज्यादा प्रतीक्षा करना दुष्कर मानते हैं। यहीं नहीं, कूरियर वालों की दया पर दिन गुजरना, सप्ताहांत में वितरण न होना, कई बार खुद आपका घर में न होना, पर्व-त्योहारों पर उनकी छुट्टियाँ, अधिकाधिक वितरण के बोझ के बहाने आज-कल होता रहना इत्यादि सदा व्याकुल करता है।
वहीं ईबुक मिनटों का खेल है! भुगतान होते ही वह आपके समक्ष होता है।
6. यत्र – तत्र – सर्वत्र

मुझे अपने पुस्तकों से इतना लगाव है कि उन्हें खोने का भय भी सदा बना रहता है (जो आपके प्रीतिपात्र हैं उनके लिए इतनी चिंता स्वाभाविक है)। परन्तु इन पुस्तकों के बैकअप का अर्थ है या तो अतिरिक्त प्रति रखना या किसी ऐसे ठोस जगह पर रखना जहाँ बाढ़ से लेकर बवंडर तक न पहुँच पाए।
परन्तु ईबुक के साथ ऐसी कोई चिंता नहीं क्यूंकि यह एक साथ मेरे मोबाइल, लैपटॉप, ईरीडर, क्लाउड इत्यादि स्थानों पर उपलब्ध है और कहीं से भी पढ़ा जा सकता है। इनके खोने या नष्ट होने का लगभग कोई डर नहीं।
7. मुफ्त का माल

जब तक यह आपके पास भेंट या समीक्षा प्रति के तौर पर नहीं आती, मुद्रित पुस्तकों के संसार में मुफ्त नाम कि कोई चीज़ नहीं। यहाँ तक कि वो रचनायें जिनपर किसी का कॉपीराइट नहीं, उनके लिए भी आपको जेब ढीली करनी ही होगी। कारण – कागज और छपाई पर व्यय।
वहीं दूसरी ओर शेक्सपियर समग्र से लेकर प्रेमचंद की सम्पूर्ण रचनाएं मुफ्त उपलब्ध हैं – ईबुक फॉर्मेट में! कितनी भी प्रतियाँ बाँटिये या डाउनलोड करें – कोई बाध्यता नहीं और कोई वैधानिक समस्या भी नहीं।
नए नवोदित लेखक भी इसका लाभ ले सकते हैं जो अपनी सामग्री मुफ्त वितरित करना चाहते हैं।
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— हिन्दी जंक्शन (@hindijunction) August 18, 2017
8. सदैव सुलभ

‘आउट-ऑफ-स्टॉक’ का पट्टा आपकी उत्सुकता पर बट्टा लगा देता है! यह भी नहीं पता होता कि फिर कभी उपलब्ध हो पाएगा या नहीं।
ईबुक इस समस्या का सबसे बड़ा हल है। खपत का इसके उपलब्धता से कोई सीधा संबंध नहीं है – चाहे एक ही दिन में कितनी भी प्रतियाँ निकल जाए या उसकी कोई मांग ही न हो जिसके कारण वह छपाई से बाहर हो जाए। यूँ कहें कि आउट-ऑफ-प्रिंट नाम की कोई बात ही नहीं हो सकती। यह प्रकाशकों के लिए भी एक राहत है जहाँ कम या न के बराबर बिकने वाली पुस्तकें भी जनसुलभ बनाई जा सकती है। कोई पुस्तक न भी चली तो कम से कम मुद्रित पुस्तकों जितना घाटा नहीं होता जिन्हें बाद में औने-पौने दाम पर बेचना पड़े।
यहाँ रद्दी में कुछ भी नहीं जाता और निवेश भी एक बार का ही होता है।
9. पर्यावरण

जब भी आप एक ईबुक खरीदते हैं, एक पेड़ अपनी खैर मनाता है!
मैं जब भी ईबुक खरीदता हूँ तो किसी पेड़ के काटे जाने के सहभागी होने के अपराधबोध से अपने आप को मुक्त पाता हूँ। हाँ, मुद्रित पुस्तकों पर ‘recycled’ का लोगो कुछ राहत वाली बात अवश्य होती है। ईरीडर हो सकता है ewaste के लिए उत्तरदायी बनें, परन्तु ईबुक्स कतई नहीं।
10. Ebooks अतिक्रमण नहीं करता

अलमारियाँ पुस्तकों से भरती रहेंगी और घर अलमारियों से!
जब तक आपके पास पर्याप्त जगह है, आप जितनी चाहे पुस्तकें ले सकते हैं और उनके लिए समर्पित अलमारियाँ भी। परन्तु शहरी क्षेत्र में 2BHK में आशियाना बनाए उन पुस्तकप्रेमियों का क्या जिनके लिए स्थान खुद एक बड़ी बाधा है। एक समय ऐसा आता है जब अलमारियाँ भी कराहने लगती हैं और नयी आप ले नहीं सकते। ईबुक्स हजारों पुस्तकों का जमावड़ा होने के पश्चात भी अतिक्रमण से दूर रहता है।
पूरी पुस्तकालय आपके जेब में समाहित है साहब!
11. सूक्ष्म, क्षुद्र एवं संकुचित शब्द – फॉण्ट व्यवस्थापन

मैंने कई प्रकाशकों को देखा है कि कम लागत में पुस्तक छापने के चक्कर में फॉण्ट और लिखावट एकदम सूक्ष्म और संकुचित कर देते हैं (दुर्भाग्य से ऐसी समस्या बड़े प्रकाशकों के साथ भी है)। अब हम में से कई पाठक 6/6 की आँख लिए नहीं होते तथा बुजुर्ग पाठकों के लिए भी छोटे अक्षर लगभग अपठनीय ही होते हैं। अपाठ्यता की इस समस्या के लिए ईबुक सबसे बेहतर निदान है जिसमे आप फॉण्ट आकार, प्रारूप, शब्दों और वाक्यों की स्थिति इत्यादि अपने सुविधानुसार बदल सकते हैं। यही नहीं, आँखों पर ज्यादा ज़ोर न पड़े, इसके लिए आप उपयुक्त पृष्ठभूमि का भी चुनाव कर सकते हैं।
हमारे पूर्वाग्रहों के विपरीत ईरीडर बुजुर्गों और अधेड़ उम्र के पाठकों के बीच मित्रवत तथा उपयोगी स्थान ग्रहण कर सकता है।
आपकी बारी!
मैंने उपरोक्त पंक्तियों में अपनी राय रखी है। हो सकता है पिछले लेख के अनुसार कुछ विरोधाभास भी लगे। चुनाव आपको करना है। अपनी सहमती-असहमति अवश्य बताएँ।
आप अपना मत हमे नीचे कमेंट बॉक्स अथवा ईमेल के माध्यम से प्रेषित कर सकते हैं।
नोट : यह लेख मेरे अंग्रेजी ब्लॉग पर छपे Books Vs Ebooks श्रृंखला का हिंदी रूपांतरण है (अनुवाद नहीं)। इसे पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
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Topics Covered: Advantages of Ebooks, Books vs Ebooks, EReaders, Amazon Kindle Hindi
Point no 7 मुफ्त , इसके बारे में बताएं। अपनी ई बुक को मुफ्त में कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है?