प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution or Over Illumination), यह अपने तरह का एक नया प्रदूषण है जिसे किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि प्रकाश भी प्रदूषण का एक सबल कारण हो सकता है. खगोलीय अध्ययन से लेकर पशु-पक्षी और हम मानव जाति भी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से इसके चपेट में आ चुके हैं.

बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में जब नानी घर जाते तो कई बार खुली छत पर सोने का मौका मिलता. घोर कालिमा लिए हुए आकाश पर स्पष्ट तारे स्कूल का श्यामपट्ट याद दिलाता जिसपर प्रकृति ने चाक से कई टिमटिमाते बिंदु बना डाले थे. यह वही वक़्त था जब मैंने तारा समूहों को भी पहचानना शुरू कर दिया था. परन्तु एक बात से हमेशा अचरज होता. गाँव में आकाश इतना स्पष्ट और साफ़ कैसे? चौथी क्लास के अबोध मन ने बस इतना ही अंदाज लगाया कि आकाश यहाँ ज्यादा नीचा है या गाँव की ज़मीन असमान के ज्यादा समीप ! इस प्रकार सबसे अगले बेंच पर बैठकर पढने का सुखद भ्रम होता जहाँ श्यामपट्ट ज्यादा समीप और टिमटिमाते अक्षर स्पष्ट नज़र आते.
आगे चलकर जब दिन में सितारे न दिखने के पीछे का विज्ञान समझ में आया तब जाकर ज्ञात हुआ की गाँव के आकाश पर सितारे इतने साफ़ क्यूँ है. दरअसल शहरों में व्यापक प्रकाश और वातावरण में विद्यमान सूक्ष्म कण ही है जो रात में विभिन्न स्रोत से निकल रहे प्रकाश को वातावरण में बिखेर देते हैं (scattering). और इसका मुख्य कारण कृत्रिम प्रकाश ही है.
क्या होता है प्रकाश प्रदूषण ?
अन्य प्रदूषण की तरह यह भी नयी सभ्यता और औद्योगिक विकास की देन है. इसके मुख्यतः दो कारण है – वायु प्रदूषण के साथ कृत्रिम रोशनी का ग़लत और बेवजह इस्तेमाल. जब प्रकाश के विभिन्न स्रोतों को गलत तरीके से लगाया जाए तो यह वायुमंडल में विद्यमान कणों से विसर्जित और बिखर कर पूरे वातावरण में फ़ैल जाता है. इससे रात्रि का आकाश लालिमा लिए नज़र आता है. जहाँ जगमगाहट ज्यादा है, वहाँ प्रकाश प्रदूषण और भी ज्यादा विद्यमान होता है.
Los Angeles शहर के 1994 में आये भूकंप से शहर की पूरी बिजली स्थिति चरमरा गयी. अपनी पीढ़ी के लोगों ने पहली बार घना आकाश और उसमें सितारों को देखा. उन्होंने डरकर आपातकाल नंबर पर फ़ोन कर आसमान में किसी रुपहले चीज़ के होने की आशंका जताई. दरअसल उन्होंने पहली बार यह दृश्य देखा था. वह कुछ और नहीं अपितु हमारी आकाश गंगा (Milky Way) थी और वह नभ में टिमटिमाते सितारे देख रहे थें …
इससे नुकसान क्या और कितना होता है ?
इसका पहला प्रभाव आम जनों ने तब जाना जब 1964 में एक खगोलीय प्रयोगशाला शहर से सुदूर क्षेत्र में किसी पहाड़ पर बनाया गया था. यह हमपर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से प्रभाव डालता है. इसके प्रभाव निम्न है :
1. खगोल विज्ञान तथा तारों के अध्ययन पर विशेष प्रभाव
हब्बल टेलिस्कोप अन्तरिक्ष में सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ा गया क्यूंकि वह सितारों के नज़दीक जा सके (एक गलत धारणा). इसका मुख्य कारण था टेलिस्कोप का कम से कम व्यापक रोशनी से संपर्क. कई खगोलीय प्रयोगशाला भी सुदूर क्षेत्र में इसलिए ही बनाये जाते हैं कि प्रकाश का कोई हस्तक्षेप न हो. शहरों के आसमान में अब तारों का ज्यादा न दिखना नुकसान प्रतीत न हो, पर हम तारा प्रेमियों को यह जरूर दुखी करता है. हम तो अपने बच्चों को ले जाकर यह भी नहीं दिखा सकते की यह अमुक तारा समूह है (जैसा की मैंने कभी अपने बचपन में देखा था).
ऐसा ही चलता रहा तो शहरी क्षेत्र से कुछ दिनों में तारों का दिखना दुर्लभ दृश्य होगा
इसे कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं. अगर आप किसी सिनेमा हॉल में जाते हैं तो फिल्म दिखाने के दौरान सभी बत्तियाँ और दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं ताकि पूरा थिएटर अंधकारमय हो जाए और स्क्रीन सूस्पष्ट दिखे. हम आज असमान में सही से तारे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि हमने आवश्कता से अधिक ‘बत्ती’ जला रखी है जिससे हमारी खगोलीय स्क्रीन धुंधली हो चुकी है.

2. पक्षियों तथा पशुओं पर दुष्प्रभाव
रात्रि में भी प्रकाश के कारण कई पक्षी यह फैसला नहीं ले पाते कि सुबह है या रात. यही नहीं, यह उन प्रवासी पक्षियों को भी दिग्भ्रमित करता है जो साल में मौसम के अनुसार स्थान बदलते हैं. दरअसल वह चाँद और तारों को देख दिशा का पता लगाते हैं और किसी प्रकाशीय प्रान्त से गुजरते वक़्त उनके स्थिति का सही आभास नहीं हो पाता. कई बार वह या तो इसी भ्रम में देर से या बहुत पहले निकल जाते हैं तथा बाद में गंतव्य स्थान पर अनुकूल मौसम न पाकर कई बार मर भी जाते हैं. और अगर बच भी गए तो नीड़ निर्माण तथा प्रजनन प्रक्रिया के बाधित होने से उनपर फिर से असर पड़ता ही है.
वही पशु जहाँ धूप में अपनी छाया को देख स्थान का पता लगाते हैं, वहीँ रात्रि के अनावश्यक प्रकाश उनके इस प्रकृतिक गुण को क्षीण करते हैं.
प्रकाश प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लाखों प्रवासी पक्षी मारे जाते हैं
3. पौधों पर हानिकारक असर
हम सभी को मालूम है कि पेड़-पौधे ‘फोटोसिंथेसिस’ की क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते हैं और रात्रि का अंधेरा उन्हें एक महत्वपूर्ण यौगिक तैयार करने में मदद करता है जिसे हम ‘फाइटोक्रोम’ के नाम से जानते हैं. हर वक़्त मिल रही रोशनी से उनके यह गुण और प्रक्रिया बाधित होती है.

यही नहीं, ऋतू में आये बदलाव को पौधे दिन और रात की अवधी से ज्ञात करते हैं. परन्तु अगर प्रकाश उन्हें अनियमित ढंग से मिले तो उनके लिए यह फर्क करना थोडा मुश्किल हो जाता है. यह उन वनचरों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है जो पेड़ पौधों पर तथा इसके मौसमी बदलाव आश्रित हैं.
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4. मौसम तथा मौसम चक्र में बदलाव
मौसम पर इसका असर परोक्ष रूप से तो नहीं पड़ता, परन्तु अत्यधिक CO2 उत्सर्जन का कारण बिजली की वो खपत भी है जो कई प्रकार से अनावश्यक है. और CO2 ने हमारे मौसम पर क्या प्रतिकूल प्रभाव डाला है यह हम सभी भली भांति जानते हैं.
5. मानव शारीर पर प्रभाव
इश्वर ने हमारा देह तथा इसका विकास प्रकृति के कुछ नियमों के तहत किया है. हम दिवा-रात्रि के उस ताल से पोषित-पल्लवित हुए हैं जो मानव के अस्तित्व में आने के समय से है. हमारी जैविक घड़ी भी इसी के अनुसार चलती है. चूँकि हम भी धीरे-धीरे ‘अंधकार’ से दूर होने लगे हैं, तो यह भी हमें कई बिमारियों का ग्रास बना रहा है. यह बात पर्याप्त नींद लेने की नहीं, परन्तु रात्रि में भी प्रकाश के समक्ष होने से है जो अप्रकृतिक है.
हमारे शरीर में ‘मेलाटोनिन‘ नमक एक हॉर्मोन का निर्माण तभी संभव होता है जब नेत्रों को अंधकार का संकेत मिलता है. इसका काम शरीर की प्रतिरोध क्षमता से लेकर कोलेस्ट्रोल में कमी अथवा अन्य अति-आवश्यक कार्यों का निष्पादन है जो एक स्वस्थ शारीर के लिए अहम है.
ज्ञातव्य हो कि कंप्यूटर स्क्रीन से निकल रहा प्रकाश भी उपरोक्त बाधा में अपनी भूमिका निभाता है (जो एक नीली रोशनी का स्रोत है). इसलिए देर रात जागकर इसपर काम करना सिर्फ आँखें ही नहीं, समस्त शारीर के लिए नुकसानदायक है.
प्रकाश प्रदूषण या अत्यधिक प्रदीप्ति के अन्य कई दुष्प्रभाव भी हैं. जैसे मान लीजिये आप रात के फुर्सत में बालकनी से क्षितिज या असमान को निहारने गए और कुछ न दिख कर लाल/नारंगी आकाश ही दिखता रहे तो यह मनोवैज्ञानिक असर भी डालता है. हम अपने बच्चों को तारा समूह इतिहास के तौर पर पढ़ाएंगे, विज्ञान या खगौल-शास्त्र के तहत नहीं.
इसका उपाय क्या है ?
प्रकाश प्रदूषण के मूलतः दो स्रोत हैं – अधिकाधिक बाह्य रोशनी और अनावश्यक अंदरूनी प्रकाश जो घर के भीतर होता है.
बाह्य रोशनी ज्यादातर स्ट्रीट लाइट या घर के बाहर लगे रोशनी के उपकरणों द्वारा होता है. स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था तथा बनावट कुछ इस तरह हो जो रोशनी को सिर्फ़ उपयोग सीमा में सिर्फ नीचे की तरह केंद्रित करे तो बहुत हद तक प्रकाश प्रदुषण पर काबू पाया जा सकता है. नीचे तस्वीर में इसकी व्याख्या है (तारों की स्पष्टता उदाहरण मात्र के लिए है).

जहाँ तक घरों के बाहर रोशनी का सवाल है, इसे भी उपरोक्त व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही लगाना चाहिए. इनका प्रयोग भी उतना ही हो जितना जरूरी है. यह भी ध्यान रहे की यह सीधा आपके पड़ोस की ओर न हो.
घर के भीतर की प्रकाशीय व्यवस्था आपके मूड और समय के अंतर्गत हो. नीली रौशनी (LED लाइट की सबसे बड़ी खामी) से ज्यादा ‘वार्म लाइटिंग’ को प्रधानता दे. समय पर बत्ती बंद कर अँधेरे या बहुत कम रोशनी में सोये.
प्रकाश प्रदूषण का मानव शरीर पर दीर्घकालिक प्रभाव उतना ही है जितना अन्य हानिकारक घटकों का
तमसो मा ज्योतिर्गमय – हमें अंधकार की जरुरत है
जगमगाहट, चकाचौंध, कौंधने वाली चमक, दैदिप्तिमान व्योम – यह सुनने और देखने में भले ही बड़े अच्छे लगते हों, परन्तु शनैः-शनैः यह हमसे बहुत कुछ छीन भी रहा है. विडम्बना यह है की ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की प्रार्थना है – परन्तु अज्ञान रुपी अंधकार से. हम अभी प्रकाश में तो हैं, लेकिन यह फिर से हमारी अज्ञानता है. जरुरत है कुछ आवश्यक ‘अंधकार’ की.
अतिरिक्त जानकारी एवं स्रोत:
विकिपीडिया : प्रकाश प्रदूषण
दैनिक भास्कर : प्रकाश प्रदूषण से निजात …
डार्क स्काई : एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान
Topics Covered : Light Pollution In Hindi, Over Illumination, Side Effects of Excessive Lightening