क्या वैमानिक शास्त्र सच में वैज्ञानिक है ? हम भारतीयों ने पुरातन काल में ही उड़ने वाला यन्त्र सफ़लता से बना लिया था क्या? राईट बंधुओं को इसके आविष्कारक होने का श्रेय मिलना चाहिए या नहीं? क्या सच क्या झूठ, पढ़िए इस लेख में …

वेदों और विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा अनवरत होती रहती है. परन्तु लोकवाद यहाँ भी है. समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब हमारे देश में किम्वदंतियाँ और जनश्रुतियों के आधार पर ‘इतिहास’ गढ़ दिए जाते है. तब इसमें आश्चर्य क्या कि लोग शास्त्रों में लिखी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करने पर ‘लिखित प्रमाण’ न मान ले. मैंने शास्त्रों में छिपा अकूत ज्ञान और गूढ़ बातों का कभी खंडन नहीं किया, परन्तु इसकी आड़ में किया जा रहा धर्म-प्रचार और निराधार वैज्ञानिक प्रमाण मिथ्याभाव को ही बढ़ावा देता है. हम उस उपलब्धि के लिए अपनी पीठ थपथपाने लगे हैं जो एक मिथ्या है. ग़लतफ़हमी और खुशफ़हमी का फ़र्क बहुत न्यून होता है, कुतर्क-शास्त्र ने वह भी मिटा डाला.
किसी और के श्रम का श्रेय भी हमे ही चाहिए
विमान या वायुयान को भारतीय आविष्कार बताने वाली बात समय-समय पर तूल पकड़ती रहती है. कभी मिथकों का हवाला देकर तो कभी उस शास्त्र (Vaimanika Shastra, वैमानिक शास्त्र) की बात करना जो खुद संदेहास्पद है. प्रस्तुत लेख ‘जो खोजा, हम भारतीयों ने ही खोजा’ धारणा पर प्रकाश डालने के लिए है.
वैमानिक शास्त्र या धर्म-ग्रन्थ या वेद-पुराणों के आधार पर की जा रही पुरातन काल में उड़ान की पुष्टि पर मेरे कुछ मत है जो निम्न हैं:
1. गल्प और सिद्धांत
गल्पों के आधार पर सिद्धांत की बात करना थोड़ी हास्यास्पद है. वैज्ञानिक खोजों का एक क्रमबद्ध चरण होता है – समस्या, परिकल्पना, प्रयोग, प्रेक्षण और फिर निष्कर्ष. यही चरण किसी वैज्ञानिक सृजन का आधार बनती है – वह चाहे खोज हो या आविष्कार.
दूसरी बात, विज्ञान की प्रगति समानुपाती और समतुल्य होती है. महाभारत में आप नाभिकीय हथियार का उल्लेख तो करते हैं, परन्तु यह नहीं बताते कि Nuclear Theory जैसे गूढ़ विषय को समझने वाले अन्य सिधांत में कैसे पीछे रह गए? नाभिकीय कार्यप्रणाली को समझने वाले electro-magnetism, general mechanics इत्यादि के तहत बिजली-बत्ती या यांत्रिक सवारी क्यूँ नहीं बना पाए? उनके पास मिसाइल तो थी परन्तु मशाल और रथ से ही युद्ध किया! तकनीक की ऐसी रिक्तियां या अंतर विरोधाभास पैदा करते हैं.
माना की कुछ विधाएँ हमारे कालखण्ड में विलुप्त हो गयी, परन्तु जिन तकनीकों का हम हजारों साल पहले व्यावहारिक रूप में उपस्थित होने की बात करते हैं, उस हिसाब से हमें सदियों पहले रोबोट या अन्तरिक्ष युग में होना चाहिए था.
2. रामायण में पुष्पक विमान या अन्य आकाश मार्गीय यात्रा
एक उदाहरण लीजिये. ‘चलत विमान कोलाहल होय’. लोग इस दोहे का यदा-कदा उल्लेख कर इस बात की पुष्टि करते हैं कि तुलसीदास भी विमानों के बारे में जानते होंगे. परन्तु इससे इस बात की पुष्टि होना कि हमे aeronautics की जानकारी थी – गले नहीं उतरती. आज अगर में अपनी कल्पना से यह कहूं कि ‘टाइम मशीन’ के चालू होते ही वातावरण प्रकाशमय हो गया, कोलाहल सा प्रतीत होने लगा इत्यादि तो क्या आने वाली सदियों में मुझे इसका अविष्कारक या जनक कह दिया जाएगा? तुलसी ने रामायण अपने हिसाब से लिखी थी जिसमे वाल्मीकि रामायण के कई घटनाओं का दोहवलियों में सयोंजन है, तो इसमें क्या आश्चर्य कि ‘पुष्पक विमान’ वाले सन्दर्भ का भी उल्लेख है. अब वाल्मीकि या तुलसी वैज्ञानिक प्रतिभा के हो गए ?
3. पुरातन रेखाचित्र इतने स्पष्ट कैसे?
हमारी पाठ्य संस्कृति श्रुति और स्मृति की रही है. ऐसे में वैमानिक शास्त्र में रेखा-चित्रों या आकृतियों का ३००० वर्ष से ज्यादा पुराने होने की बात संशय पैदा करती है. यही आकृतियाँ अगर किसी शिला लेख या भोजपत्र पर मिलती जो उतनी ही पुरानी होती तो संभवतः विश्वास कर पाता. मैंने अब तक कोई ऐसा पुरातन ग्रन्थ नहीं देखा जिसमे कोण से लेकर रेखाओं का सटीक माप इस प्रकार दिया गया हो (ज्ञातव्य हो कि उस वक़्त संख्या प्रणाली भी वैसी नहीं थी जैसी अब है). दूसरी ओर, इस शास्त्र की रचना कथित तौर पर बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में हुई थी जिसका ज्ञान महर्षि भरद्वाज ने दिया था. अगर रेखाचित्र श्लोकों के आधार पर भी बनाये गए तो उनकी उड़ान क्षमता संदेह के घेरे में रही है. आप सहमत नहीं तो अगला तर्क पढ़ें.
4. सम्राट अशोक ने ट्वीट किया था कि …
अगर मुझे अपनी बात रखनी है और अगर मैं कोई प्रतिष्ठित लेखक या विचारविद नहीं हूँ तो में अपनी बात मनवाने के लिए दो कार्य अवश्य कर सकता हूँ. पहला, किसी जाने-माने व्यक्तित्व के नाम पर अपना वाक्य लोगों के सम्मुख रख दूँ जिसे वो बिना परखे यकीन कर लेंगे (फेसबुक पर ऐसे उदाहरण पटे पड़े हैं जहाँ कलाम से लेकर रतन टाटा की वो उक्तियाँ प्रचलित है जो उन्होंने कभी कही ही नहीं).
जो खोजा, हम भारतीयों ने ही खोजा”. इसी आत्ममुघ्धता ने हमारे सभी नवपरिवर्तनों पर विराम लगा रखा है
दूसरा, मैं कुछ सम्बंधित ग्रन्थ उठाऊँगा और उसमे अपनी खुद की दो पंक्तियाँ डाल दूंगा. कालांतर में उसे उसी महान लेख या काव्य या ग्रन्थ का भाग मान लिया जाएगा और लोगों को भ्रमित करता रहेगा. इसे Reverse Plagiarism कहते हैं जहाँ लेखक लेख चुराता नहीं अपितु किसी और के कार्य में अपनी बात सलंग्न कर देता है. इससे उसका नाम तो नहीं फैलता और न ही श्रेय मिलता, परन्तु उसकी बात या दृष्टिकोण फ़ैल जाती है क्युकी यह अब किसी बड़े नाम या काम के साथ जुड़ा हुआ होता है. संस्कृत में इसे ‘प्रक्षिप्त’ कहते हैं.
वैमानिक शास्त्र १९विं या २०वीं सदी का प्रकाशित रूप है, इसे महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित होने की बात उपरोक्त तर्क के कारण थोड़ी संदेहास्पद है. मैं यह भी मानता हूँ कि महर्षि ने ऐसी कल्पना की होगी या सूत्रों में इसे बताया होगा, परन्तु रेखा-चित्रों तथा सटीक विश्लेषण का वहां होना समसामयिक समावेश प्रतीत होता है.
आचार्य चाणक्य ने भी कहा था – इन्टरनेट पर सभी बात भरोसेमंद नहीं!
5. वह क्या सच में प्राचीन विद्या या विचार है?
मैं अभी के प्रतिपादित कुछ वैज्ञानिक सिद्धांत लूँ और उसे संस्कृत में अनुवाद कर किसी सप्तऋषि के नाम से प्रकाशित करवा लूं तो हर १० में से ९ भारतीय इस बात को मान लेगा की यह एक पुरातन तथ्य है – है न? जरूरी नहीं कि सभी सिद्धांत के साथ ऐसा ही किया गया हो, परन्तु इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं कि ऐसा न हुआ हो. आप गुप्त काल में लिखे शुक्रनीति को ही लें जिसके कुछ श्लोक 1870 ईसवीं में डाले गए और उसे और भी महान बना दिया (श्लोक संख्या 25 से 32).
किसी भी अख़बार को बिना दूध वाली चाय में डूबोइये, सुखाकर उस भूरे पन्ने को वर्षो पुराना दस्तावेज होने का प्रमाण मान दुनिया को दिखाये!
6. ‘समरंगनासूत्रधारा’ भी दुष्प्रचारित है
जाने माने खगोलशास्त्री प्रोफ० जयंत नारलेकर भी अपनी एक पुस्तक में वृहद्विमानशास्त्र का खंडन कर चुके हैं (The Scientific Edge, Penguin Publisher, Pg. 21). उनका कहना है कि उन्हें भी विमानशास्त्र में ऐसा कुछ नहीं मिला जो इस बात की पुष्टि करे. उन्होंने राजा भोज द्वारा लिखित ‘समरंगनासूत्रधारा’ में भी इस बात के होने के प्रमाण नहीं मिले. वहां ‘विमान’ शब्द मंडपनुमा खिड़कीयों के लिए प्रयोग हुआ है न की किसी उड़ने वाली चीज़ के लिए (यह शास्त्र वास्तु से जुड़ा ज्यादा प्रतीत होता है न की वैमानिकी से).
7. ऐसा भी है
पड़ोस में रहने वाला बच्चा अगर कल पतंग उड़ाता नज़र आये तो क्या में यह अनुमान लगा लूं कि उसने गुरुत्वाकर्षण के नियमों को समझ लिया है? और चूँकि वह गुरुत्व के बारे में जानता है तो Calculus भी जानता होगा ! और चूँकि उसे Calculus के बारे में पता है तो गणितज्ञ तो होगा ही! और ऐसे अनुमान अविरल मेरे भारतीय भेजे में उथल-पुथल पैदा करते रहेंगे और वह बच्चा सहस्राब्दी बाद अमर हो जाएगा!
हम हर उस तथ्य पर जल्दी यकीन कर लेना चाहते हैं जो पांच लोगों के बीच हमारा सीना फुला सके. इसलिए साधारण घटना का असाधारण आकलन आँख मूंद कर किये जा सकते हैं.
8. कल्पना और आविष्कार
पौराणिक कथाओं से वैज्ञानिक तथ्यों की पुष्टि मुझे तर्कसंगत नहीं लगता. जैसे पुष्पक विमान का रामायण कथा में होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि सदियों पहले हमारे यहाँ विमान हुआ करता था. मुझे अगर विमानों के होने की बात सिद्ध करनी है तो मैं Avionics, Airworthiness, Mechanisms, Flight Principle इत्यादि की भी बात करूंगा, न की अन्दर बैठे लोगों की तस्वीर दिखाऊँगा जो भ्रामक हो सकती है. कथा में लेखक अपनी कल्पना से कुछ भी लिख सकता है. कल को अगर हमने आकाश गंगा या समय में यात्रा कर ली तो जरूरी नहीं Spaceship और Time Machine के जनक या आविष्कारक एच. जी. वेल्स घोषित कर दिये जाए. कल्पना कोई भी व्यक्ति कर सकता है, परन्तु इसका न तो श्रेय दिया जाता है और न ही कोई इसका पेटेंट ले सकता है.
भारत के अलावा विश्व में और कहीं कुछ खोजा ही नहीं गया व जो खोजा हमारे पुरखों ने ही खोजा – जरुरत है हम ऐसी आत्ममुग्धता और मिथ्याभास को दरकिनार कर ऐसे प्रगति पथ पर आये जो व्यावहारिक हो. कपोल कल्पना से वैचारिक प्रगति नहीं होती.
किसी और के श्रम का श्रेय के लिए इतना ललायित क्यों ?
स्रोत :
1. IISc Bangalore द्वारा किये गए अध्यन का PDF
2. Vaimanika Shastra Wikipedia Page
3. Vaimanika Shastra Website
4. The Vimanas – The Ancient Flying Machines
6. Ancient Aliens Debunked – Vimanas
Topics Covered : Vaimanika Shastra, Truth of Ancient Indian Knowledge, Sage Bhardwaja, Vedic Science, Indian Myth
बचुवा कुछ ज्यादा ही पढ़ लिया… इसलिए ज्ञान बाँट रहा है…
आप जैसों के जब तक ज्ञान चक्षु न खुले, निराश करना जारी रखूंगा !
प्रिय अमित जी,
आपके रोचक लेख को पढने का अवसर मिला, देख कर ख़ुशी हुई कि आज के युवा भी भारतीय संस्कृति में इतनी गहरी रूचि लेते हैं और इसका साथ में विश्लेषण भी करते हैं/ मै आपको यहाँ सिर्फ ये बताना चाहूँगा कि ये जरूरी नहीं कि जो आपकी समझ से परे हो या जिसका पूरा प्रमाण न मिले / तो उस विषय के बारे में भारतीय या भारतवर्ष में पहले नहीं थी/ किसी भी चीज की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए सारे तर्कों और यहाँ तक की अपने मन में उठ रहे नकारात्मक या सकारात्मक सोच से भी ऊपर उठ कर देखने की जरूरत होती है/
मैं यदि कहूं कि सर आइसक न्यूटन के ही मन में क्यूँ आया कि सेब पेड़ से गिर कर नीचे ही क्यों आता है और गुरुत्वाकर्षण के सिधांत का प्रतिपादन हुआ, लेकिन उससे पहले ये कल्पना ही थी/ और एक बात मैं आपको पूरी तरीके से साफ़ कर देना चाहता हूँ कि हमारे भारत ने विश्व को सिर्फ दिया है, इसलिए भारत पुरातन काल में विश्व गुरु था/ देश विदेश से छात्र नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढने आते थे/ सकारात्मक विचार व्यक्ति को कार्य करने कि उर्जा देते हैं और नकारात्मक विचार उसे जांचने कि क्षमता, लेकिन इन दोनों का संतुलन इसके लिए जरूरी है/ ज्ञान जब तक नहीं मिलता तब तक कल्पना या कठिन ही प्रतीत होता है/ विशेष शुभ….
महाराज इस हिसाब से शून्य और दशमलव भी कल्पना ही है। क्यों