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हिंदी जंक्शन

थी एक बहन (हिंदी कहानी) – अपनी डायरी से

नाम से अर्चिता और भाग्य-कर्म से अपराजिता. यह उन बहनों की मर्मस्पर्शी कहानी है जो मजबूरियों से समझौता कर खुश रहना बखूबी सीख लेती है. किन्ही का भाग्य पलट भी जाता और किन्ही का नहीं. मेरी अपनी ही डायरी से ...

in साहित्य एवं पुस्तक समीक्षा
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चित्र किरण कुमार से साभार

अर्चिता के घर की माली हालत यही थी कि कभी-कभार उसके घर जाना होता तो चाची सबसे छोटे बेटे को दुकान दौड़ाती – चुराकर मूंगफली लाने। निम्न-मध्यम वर्गीय घर में सबसे छोटे लड़के के प्रारब्ध में यही लिखा होता है कि अचानक मेहमान आने पर एक दौड़ दुकान की लग ही जाया करती है। कभी भूजा के लिए पचास ग्राम उधार मूंगफली तो कभी काजू वाली ‘स्पेशल’ बिस्कुट लाने। वह सौंपे हुए काम में इतने पारंगत हो चुके होते हैं कि मेहमान से छुपाकर लाने वाली बात कहने की जरुरत ही नहीं होती। परन्तु फूली हुई जेब, अचानक से उभर आया बेडौल पेट और घर घुसते ही किचन तक सरपट चाल उन डब्बों की हालत बयाँ कर देता जिनकी किस्मत में अक्सरहां खाली रहना ही लिखा होता था। भैया, यानी मैं, खाते-पीते घर के थे और मूँहबोली बहन अख़बार बेचने वाले की बेटी। इसलिए स्वागत की ऐसी परंपरा का वहन कोई नयी बात नहीं थी।

पिता को जब पीने की लत लगी तो घर का भार बेटी ने ही उठाया – किसी बड़े अस्पताल में एक मामूली सी नौकरी से। जब बुरा दिन आता है तो सबसे पहले घर में बड़े बेटे की पढ़ाई छूटती है और छोटा उस कम्पटीशन की तैयारी में लग जाता है जो सरकारी नौकरी की आस में परिवार की उम्मीद कायम रखता है। अब अर्चिता ही अन्नपूर्णा थी। घर तो जैसे-तैसे चल ही जा रहा था।

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Divya Praksh Dubey Hindi Writer

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Maila Aanchal Hindi Novel by Phanishwarnath Renu

फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ लिखित मैला आँचल निहायत ही रद्दी उपन्यास है

दो किस्म के माँ-बाप अपनी बेटी को जल्द से जल्द ब्याह देना चाहते हैं – एक जिनके पास धन दौलत है और दूसरा जिनके पास नहीं। पिता के बेकार पड़े रहने से घर में अब माँ ही कर्ता-धर्ता थी। उन्होंने बेटी को इतनी छूट अवश्य दे रखी थी कि अपने पसंद के लड़के से शादी कर ले। यह लाचारी थी या विश्वास पर टिकी आजादी – माँ-बेटी ही जाने। परन्तु अभागीयों की भी अपनी किस्मत होती है। सुन्दर-सुशील होने के बावजूद भी शादी होने तक अर्चिता का स्टेटस ‘सदा सिंगल’ ही रहा।

जब मैं आगे पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर को निकला तब मिलना जुलना पहले जैसा नहीं रहा, परन्तु फ़ोन पर अक्सरहाँ खोज-खबर हो जाया करती। इसी फोन पर चाची ने एक दिन बताया कि शादी तय हो गयी है। लड़के की नौकरी और दिखाई गयी तस्वीर से पता लग गया कि अर्चिता ने समझौता किया होगा। राखी का वह धागा जो वह प्रत्येक वर्ष मेरी कलाई पर बाँधती, आज मेरा नस दबा रहा था। भविष्य पर उम्मीद टिकाकर सभी राजी हो गए – मैं भी।

शादी के कुछ दिन पहले अर्चिता ने फोन कर शहर के एक बैंक में बुलवाया। लाख भर के रकम की कागजी कार्यवाही और किसी अन्य के खाते में डालने हेतु इस कार्य के लिए किसी विश्वासपात्र में मेरा ही नाम निकला था। ये तो चाची की किस्मत कि ज़िन्दगी भर कभी बैंक नहीं गयी, और आज गयी भी तो एकमुश्त इतनी बड़ी रकम लेकर। काम होते ही अर्चिता बाहर की कुर्सी पर बैठ फफक कर रो पड़ी। हम और चाची उसे चुप कराते हुए एक दुसरे का मूँह ताकते रहें। सवाल यही था कि क्या वह बेटी रो रही थी जिसे कुछ दिनों बाद घर से विदा होना है या वह होने वाली दुल्हन जिसने आज खुद ही बैंक जाकर अपना दहेज जमा करवाया है। दूल्हे के नाम पर अपनी भविष्य निधि में पैसे जमा करने यह प्रकरण आज मैंने पहली बार देखा था। शादी के कार्ड की जगह बैंक की रसीद पर मैं दूल्हा-दुल्हन का नाम देख रहा था – जमाकर्ता और प्राप्तकर्ता के रूप में।

आज उसका एक बच्चा भी है। उसे देखने के बाद आते वक़्त आशीर्वाद भी में मैंने एक सवाल ही दिया – “तुम खुश तो हो न”?

“हाँ, छोटा भाई आज भी रेलवे से लेकर एस.एस.सी तक का फार्म भरता है, बड़ा भाई हर महीने नौकरियाँ बदलता है, माँ घर के अहाते में दुकान खोलने के लिए पैसे जोड़ रही है और बाप … बाप … वह कभी था क्या?”

राखी का धागा फिर से नस दबाने लगा।


सच्ची घटना पर आधारित इस झूठी कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें …

(बिना अनुमति इस लेख/कहानी को किसी अन्य जगह छापना या वेबसाइट पर प्रस्तुत करना वर्जित है © हिंदीजंक्शन)

Topics Covered : Hindi Short Story, Laghukatha, Indian Woman

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Comments 1

  1. Arun Singh says:
    3 years ago

    Akhiri line – और बाप … बाप … वह कभी था क्या?”

    Bahut Sundar.

    Amit sir- we run a book recommendation blog – http://ekchaupal.com
    If you would be kind enough to look us up. We would appreciate a chance to work with you.

    Reply

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