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मुद्रित पुस्तकों के बने रहने के 15 प्रमुख कारण (पुस्तक बनाम ईपुस्तक – भाग 1)

Books vs Ebooks की चर्चा में मुद्रित पुस्तकों के बने रहने के कई कारण गिनाता यह लेख इस तथ्य को प्रबल बनाता है कि मुद्रित पुस्तकों का बाज़ार आगामी कई वर्षो तक (या सदा) बना रहेगा.

in साहित्य एवं पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक बनाम ईपुस्तक (Book vs Ebook) पर चर्चा कोई नई बात नहीं है. आये दिन तरह-तरह के अनुमान लगाये जाते हैं जिनमे ईबुक्स के बढ़ते-घटते विक्रय और प्रकाशन संसार में इससे हो रही उथल-पुथल के बारे में बहस होती है. आँकड़े जो भी कहे, मुद्रित पुस्तकों (printed books) का अस्तित्व और आकर्षण आने वाले दिनों में बना ही रहेगा.

advantage of printed books over ebooks
पुस्तक बनाम ईपुस्तक – भाग 1

जानिये मुद्रित पुस्तक ईबुक से बेहतर कैसे है और क्यों इनका प्रचलन कम नहीं होगा.

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*(एकरूपता की दृष्टि से ईपुस्तक, Ebook इत्यादि को सभी जगह ईबुक/ईबुक्स ही लिखा गया है)

1. घरेलू पुस्तकालय – यह आपके घर को घर बनाता है

advantage of printed books personal library
निजी पुस्तकालय और आपका ड्राइंग रूम

क्या यह आपके घर की आतंरिक सजावट को और ज्यादा नहीं निखरता ? पुस्तक प्रेमी के रूप में अगर यह कहूं कि अन्य बहुमूल्य सामग्री से इतर यह भी एक प्रतिष्ठा का प्रतीक है तो मान्य होना चाहए. आपकी अलमारी में रखी सैकड़ों पुस्तक को अगर सलीके से रखा जाए तो यह बेहतरीन इंटीरियर डेकोरेशन के रूप में उभर कर आ सकता है. वर्षों से संग्रहित जब इन्ही पुस्तकों से पटी अलमारियों को देखते हैं तो एक आत्मिक जुड़ाव भी सामने आता है. इसका एक और अतिरिक्त फायदा यह है कि अगर आपने घर पर कोई होम थिएटर लगा रखा है तो यह यह आपके कमरे या हॉल के acoustics को भी ठीक करता है ! मधुर संगीत और हाथ में पसंदीदा पुस्तक – स्वर्ग की नयी परिभाषा जानते हैं न ?

हार्ड डिस्क में पड़ी हजारों ईपुस्तकों का पता नहीं, परंतु पुस्तकों से सजी अलमारियाँ प्रतिष्ठा का प्रतीक अवश्य है #BooksVsEbooks

— हिन्दी जंक्शन (@hindijunction) November 23, 2015

आपके हार्ड-डिस्क या मोबाइल में रखी हजारों ईबुक समृद्धि का ऐसा अहसास प्रदान कर सकती है क्या ? यही नहीं, आने वाली पीढ़ियों के लिए आप एक विरासत भी खड़ी कर रहे होते हैं …

2. पुस्तक और उनका सौरभ सुंगध

printed books fragrance
म्मम्मम्मम …

इस बात को सत्यापित करने के लिए जरूरी नहीं कि आप किताबी-कलमकार हों ! बचपन में नई पुस्तक की भीनी खुशबू हम में से कईयों को आज भी याद है. पुस्तकों को करीब लाकर उनके सुगंध का जायज़ा लेने वाला स्वभाव संभवतः बना ही रहेगा!

ईबुक की मदमाती खुशबू का अनुभव है किसी को ?

3. रख रखाव से पनपता अपनत्व

printed books maintenance
मेरे लाल, तुझे पीला होते देखा है …

सुनने में यह जहमत का काम लगे. परन्तु नए पुस्तकों के आते ही उनपर नाम लिखना अपनत्व की पहली शुरुआत है. फिर सलीके से उन्हें रखना या गत्ते लगाना. फट जाने पर उन्हें सिलना या चिपकाना इस अनुभूति को बढ़ावा देता है कि वह आपसे ही पोषित-पल्लवित हुए हैं जिनसे लगाव स्वाभाविक है. उसके खरीदने से पन्नों के पीले पड़ने तक का सफ़र आपकी ज़िन्दगी के सफ़र जैसा ही होता है जिनके पन्ने खोलते ही अतीत दर्शन हो जाया करता है.

ईबुक के साथ क्या यह संभव है ?

4. लुप्तप्रयोग – यह क्या है ?

printed books format advantage
सिर्फ एक फॉरमेट जो सदियों तक चले

पुस्तकों की रचना कालजयी हो न हो, खुद पुस्तकें सदैव कालजयी होती है. सैकड़ों वर्षों बाद भी अगर इसकी प्रति हाथ आए तो इसे सरलता से पढ़ा जा सकता है (अगर भाषा का लोप न हुआ हुआ हो). वहीं ईबुक के साथ अपनी अलग तकनीकी समस्या है. यह मूल रूप से डिजिटल फॉरमेट हैं जिनका चलन खुद उस वक़्त की तकनीक पर निर्भर करता है. उदाहरण के तौर पर आप संगीत, सिनेमा तथा डॉक्यूमेंट का फॉरमेट लें और पिछले 10-20 वर्षों में आये बदलाव और ट्रेंड का आकलन करें तो आप पायेंगे कि यह चीर काल तक नहीं बने रह सकते. यही हाल ईबुक के फॉरमेट के साथ भी है. इस बात से हमें कौन आश्वस्त करेगा कि अमुक फॉरमेट बीसियों साल बाद भी बना रहेगा? और अगर आपका पुराना ईबुक नए Ebook Reader से संयोग न रख पाया तो ? Format compatibility और Proprietorship का तकनीकी दंश अलग.

वहीं अगर हिंदी ईबुक की बात करें तो Amazon Kindle के साथ यह समस्या अब भी बरकरार है जहाँ यूनिकोड फॉण्ट की समस्या मूँह बाए खड़ी है. कुल मिलाकर PDF, AZW, EPUB, TXT, DOC, LIT, DJVU, MOBI, CHM इत्यादि के साथ पाला बदलते रहिए और इनमे से किन्ही के लुप्तप्राय होने के भय से भी सामना करते रहिए.

छपी हुई पुस्तकों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं !

5. अब के हम बिछड़े तो शायद …

books and memories
पलटते पन्नो से आज अतीत का एक टुकड़ा मिला है …

“मैंने अपने दिल की बात बुकमार्क पर लिख उसी किताब में सरका दिया जो उसने माँगा था. वापसी में उसी बुकमार्क के पृष्ठ भाग पर गहरे लाल लिपस्टिक का निशान छोड़ा था उसने”

इस लप्रेक की सच्चाई का सत्यापन हम में से कोई भी कर सकता है ! पुस्तकों और इसमें संलग्न प्रेम-पातियों ने न जाने कितनी प्रेम कहानियों की शुरुआत की होगी (और अंत भी). पुस्तकें भावनात्मक बैंक भी होती है. पन्ना पलटते अचानक यूं ही सूखे गुलाब का निकल आना, कुछ भूले-बिसरे पर्चियों का मिलना या कभी कभार दबाए हुए पैसे निकल आना किसी आकस्मिक उपहार से कम नहीं. ईबुक में कौन सी वस्तु कैसे दबाऊँ जो कल याद बनकर उभरे?

… जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

6. आम के आम – गुठलियों के दाम

old printed books resale
जेन ऑस्टेन की पहली प्रति कि कीमत जानते हैं ?

खरीद-बेच भी एक परंपरा है जिसका निर्वहन हम पुस्तक प्रेमी सदियों से करते आ रहे हैं. बात पुराने पुस्तकों के संदर्भ में हो रही है जिसे पढ़कर या तो आप रख लें, किसी को भेंट कर दे या बेच दें. ध्यातव्य है कि कई बार इनका मूल्य अंकित मूल्य से भी ज्यादा मिल सकता है जो इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास किस तरह की प्रति है (antique value). यहाँ तक कि इसकी नीलामी भी की जाती है. आप जब भी कोई पुस्तक लेते हैं तो यह सदैव आपके पास एक बहुमूल्य निधि बनकर रहती है.

ईबुक का पुनर्विक्रय संभव है क्या या इसकी resale value की बात कर सकते हैं?

7. उपहार एवं भेंट

books as gift
देखो इस बार मुझे क्या मिला !

चमकीले और रंगीन कागज़ में लिपटी उस पुस्तक का मोल तुम क्या जानो मोबाइल बाबू!

ईबुक उपहार में देने का ट्रेंड कितना आगे बढ़ेगा, यह कहना थोड़ा अनिश्चित है, परन्तु छपे हुए पुस्तकों का उपहारस्वरूप लेन-देन आज भी रिश्तों की गर्माहट लिए होता है. यकीन मानिये, बच्चे का जन्मदिन या मित्र को उपहार, पुस्तक उपयुक्त भेंट है ! मैंने तो अपने मित्र मंडली में घोषित भी कर रखा है कि ऐसे अवसरों में मुझे कपड़े, शेविंग किट, डीयो स्प्रे या अन्य बेफ़िजूल की सामग्री से बेहतर कुछ पुस्तकें ही भेंट कर दिया करे!

मुझे तो ईबुक लेने के लिए कोई गिफ्टकूपन भी प्रेषित करे तो मैं इसका मुद्रित संस्करण या फिर कुछ और ही खरीद लूँ !

8. आपसी लेन देन

book exchange
अपनी पुस्तक उधार दे सकते हैं मुझे ?

मेरे निजी पुस्तकालय से मित्रों का पुस्तकें उधार ले जाना मुझे कतई नापसंद नहीं. हाँ, मैं उन्हें सशर्त ले जाने को जरूर कहता हूँ जिनमे समय पर और उसी हालत में लौटाना बताया जाता है ! जब आप इसे खरीद नहीं सकते या बाजार में उपलब्ध नहीं है तब पुस्तकों का आदान-प्रदान एक सस्ता समाधान भी है. पढ़ लेने के बाद इसे किसी से बदल लेना भी साधन है. कई रेलवे स्टेशन पर आप इसे पढ़कर फेर भी सकते हैं (व्हीलर्स स्टाल पर अक्सरहाँ ऐसा होते देखा होगा).

महज़ पुस्तकों के आदान-प्रदान से ही मैंने कई पाठक मित्र बनाए ! ईबुक्स के साथ ऐसा है क्या ? #BooksVsEbooks — हिन्दी जंक्शन (@hindijunction) November 23, 2015

ईबुक के साथ या तो यह पेचीदा है, या उधार लेने की अपनी एक समयसीमा होती है या कई जगह असंभव. कई मामलों में यह कॉपीराइट का उलंघन भी है.

9. सदैव सरल

opening books
आपको पढ़ना सीखना होता है … किताबें खोलना नहीं

खोलिए और पढ़ना शुरू ! पढ़ना ख़त्म तो बस बंद कर दीजिये !

ईबुक में पहले आपको थोड़ा सीखना होगा. फिर पढने के लिए इसे ‘ON’ कीजिये और पढ़ लेने के बाद ‘OFF’ करने की अनिवार्यता भी. ऊपर से पढ़ते वक्त ध्यान बटाने को कई साधन भी होंगे आपके मोबाइल, टैब या ereader में !

10. ईबुक पर लेखक के हस्ताक्षर – चाहिए क्या ?

ramdhari singh dinkar signature
पुस्तक पर लेखक के हस्ताक्षर इसे अनमोल बनाते हैं

पुस्तक मेले मे अपने प्रिय लेखक से मिल उनकी ही पुस्तक एक कलम के साथ आगे बढ़ा दी मैंने. उन्होंने भी कृतार्थ किया !

डिस्काउंट मिले न मिले, अगर ‘Author Signed Copies’ उपलब्ध हो जाती है तो लगता है कोई बहुमूल्य वस्तु हाथ लग गयी. शुरूआती बिक्री के लिए यह एक अच्छा प्रचार माध्यम भी है. और वह अगर कोई मूर्धन्य हस्ताक्षर हो तो आपकी पुस्तक की अलमारी पर बड़े ठसक से बैठती नज़र आती है.

ईबुक पर हस्ताक्षर लिया कभी ?

11. दोहरे मापदण्ड का दंश और पूर्वधारना

mobile indulgence
हुआ है आपके साथ कभी ?

पूर्वधारणा से ग्रसित यह झिड़क हम में से कईयों को घर पर लग चुकी है.

“आखिर सारा समय मोबाइल या टैबलेट पर करते क्या हो ?”

भले ही आप उसपर घंटो कोई किताब ही क्यों न पढ़े, आपको शक के चश्मे से ही देखा जाएगा. हाँ, अगर उसी किताब का मुद्रित संस्करण सुबह शाम लेकर बैठे रहें तो कोई कुछ नहीं कहने वाला. या ज्यादा से ज्यादा आप पर ‘किताबी कीड़ा या पढ़ाकू’ का नामपत्र लग जाएगा जिसकी कोई परवाह नहीं !

12. यह बैटरी जब न ख़त्म हो जाए !

ereader battery warning message
पीप-पीप … 3 मिनट शेष …

पढाई है – कोई रेस नहीं जो आपका ereader सरपट पढ़ने को कहे. मानता हूँ कि नए ereaders की बैटरी मोबाइल से ज्यादा चलती है, परन्तु यह फिर भी अमरत्व लेकर तो नहीं आया न. हम जैसे पाठकों का क्या जो एक पंक्ति पढ़ दस पंक्तियाँ सोचने लगते हैं. अब मैं पुस्तकों में लिखे वाक्यों में गोता लगाऊँ या बैटरी स्टेटस से डरकर मात्र पाठ करने लगूँ ? इसके उलट मुद्रित पुस्तक जो जब भी मैं पढ़ने बैठता हूँ तब हम दोनों में शुरू से ही बिन लिखा करार हो जाता है – मैं अपना पूरा समय लूँगा !

बैटरी वार्निंग के पीप-पीप और कहानी के क्लाइमेक्स के बीच कभी झूलना हुआ तो उपरोक्त तर्क (या पीड़ा) समझ सकेंगे.

13. पुस्तकालय जैसी दिव्य स्थली का निर्माण कौन कराता है ?

library due to books
पुस्तकों से ही पुस्तकालय है

पुस्तकालय हम पुस्तक प्रेमियों के लिए मात्र पठन-स्थल नहीं, छात्र या पाठक संस्कृति भी है. मुद्रित पुस्तकों के संसार ने ही इसका निर्माण किया. मैं पुस्तकालय की जितनी महत्ता बताऊँगा, उतना ही वह इसी बिंदु को प्रबल करेंगे. बस इतना मान लें कि धरोहर इन्होंने भी बनाया अथवा बचाया है.

ईबुक अकेले किसी पुस्तकालय की नींव रख सकता है क्या?

14. चमचमाती बच्चों या बड़ों की किताबें

children books
इनका आकार, रूपरंग और पृष्ठसज्जा ही इनकी विशेषता है

Coffee Table Books या बच्चों की किताबें – इनका मुद्रित संस्करण ही इनके विशेषता को बनाए रखता है. भारी भरकम किताब, चमचमाती जिल्द, विहंगम रंगों से पटे पन्ने, कुछ विशेष संस्करणों में पॉपअप अथवा स्टीकर या पोस्टर इत्यादि की इलेक्ट्रॉनिक कल्पना निरर्थक है.

यकीन न हो तो Dorling Kinderslay की विभिन्न विश्वकोश या मोतीलाल बनारसीदास की रामचरितमानस उठाकर देखिये.

यही नहीं, धार्मिक पुस्तकों का जिस तरह पठन पाठन होता है (रेहल पर रखकर), वहाँ इलेक्ट्रॉनिक संस्करण लोगों को तनिक असहज प्रतीत होगा.

15. मैं भौतिकवादी नहीं हूँ परन्तु …

books and attachment
एक असीम लगाव …

अधिकतर ‘बुक बनाम ईबुक’ चर्चा इसी के इर्द गिर्द घूमती है. यहाँ उत्तर ज्यादातर दार्शनिक प्रतीत होंगे जो अंततः सत्य भी हैं. हो सकता है यह हमारी प्रकृति में है कि जिन्हें हम देख छू सकते हैं उन्हें और भी ज्यादा अनुभव कर पाते हैं. पुस्तक पढ़ते वक़्त उसे सीने से लगाना, मोटी हो तो उसका तकिया बना लेना, पढ़ते-पढ़ते किसी भावनात्मक या उत्तेजक पंक्ति पर उसे आलिंगन में लेना ऐसी क्रिया है जो ईबुक के साथ दोहराई नहीं जा सकती. यह जुड़ाव भावनात्मक भले ही हो, परन्तु इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते.

स्थूल और सूक्ष्म का महत्व अन्य तत्वज्ञान से यहाँ भिन्न है ! यहाँ स्थूल ही सर्वोपरि है जहाँ हम सूक्ष्म रूप से जुड़े हैं.

आपकी बारी !

मैंने उपरोक्त पंक्तियों में अपनी राय रखी है. आप इसके समर्थन अथवा असमर्थन में अपनी बात रखें तो कई तर्कपूर्ण तथ्य उजागर होंगे.

आप अपना मत हमे नीचे कमेंट बॉक्स अथवा ईमेल के माध्यम से प्रेषित कर सकते हैं.

नोट : यह लेख मेरे अंग्रेजी ब्लॉग पर छपे Books Vs Ebooks श्रृंखला का हिंदी रूपांतरण है (अनुवाद नहीं). इसे पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें …

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Topics Covered: Advantages of Printed Books, Books vs Ebooks, Why Printed Books Are Better Than Ebooks ?

Tags: EbooksPublishing News
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Comments 2

  1. Himanshu Narayan says:
    7 years ago

    …क्योंकि कल्पित वास्तविकता (virtual reality) कभी भी विद्यमान वास्तविकता (actual reality) का स्थान नहीं ले सकती!!!

    Reply
  2. रत्ना रॉय says:
    7 years ago

    एक पुरानी किताब पर मेरे ससुर जी के बाँग्ला में हस्ताक्षर है। इसी तरह हर किताब पर उन्होंने खरीदने की तारीख तो किसी -किसी पर जगह का नाम भी लिख रखा है। कुछ किताबों पर सासु माँ का नाम है जो उन्हें उपहार दिया था।

    पिताजी अब उतनी किताबें नही पढ़ते लेकिन मेरे लिए उन्होंने अनमोल संसार गढ़ दिया एक लाइब्रेरी के रूप में। उनके हाथों से लिखे नाम सिर्फ मेरी ही नही मेरे आने वाली कई पीढ़ी उनके संग्रह को और हस्ताक्षर को देख सकेगी। इस पर हाथ फिरा कर अगर महसूस करना चाहे तो कर भी सकते है।

    इ बुक मुझे ये फैसिलिटी नही दे सकता।

    Reply

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