तीसरे संस्करण के पश्चात् दिव्य प्रकाश दुबे की पुस्तक ‘मसाला चाय’ की समीक्षा लिख रहा हूँ जिसकी प्रति लगभग वर्ष भर पहले प्राप्त हुई थी. परन्तु यह चाय अब भी उतनी ही गर्म है! जानिये कैसा है इसका ज़ायका!

नई हिंदी की एक खेप आई है जिसे नीलेश मिश्रा से लेकर रवीश कुमार तबके के ‘लेखकों’ ने एक नया आयाम दिया है. हिंदी प्रकाशन तथा कथा संसार में आए इस हालिया बदलाव के पीछे कई युवा कलम भी अपना हुनर दिखा रही हैं. इन नए हस्ताक्षरों के बेस्टसेलर का मानक भले ही अंग्रेजी जितना समृद्ध न हो, परन्तु युवा पाठकों के बीच इनकी उपस्थिति अब अवश्य दर्ज होने लगी है.
हिन्द युग्म से प्रकाशित दिव्य प्रकाश दुबे की मसाला चाय का आकलन मैं मुख्यतः तीन बिन्दुओं पर करूंगा – भाषा, शब्द रचना और खुद कहानी.
हिंगलिश – भाषा या विधा ?
ईमानदारी से कहूँ तो लेखक की पहली किताब ‘Terms & Conditions Apply’ (इसे टर्म्स एंड कंडीशनस अप्लाई नहीं लिखूँगा !) एक-दो कहानियों तक ही मुझे लुभा सकी. जिस ‘हिंगलिश’ शैली के लिए दिव्य प्रकाश जाने जाने लगे हैं, अगर यह एक विधा है तब भी इसमें असहज महसूस करता हूँ. हम उपलब्ध हिंदी शब्दों को छोड़ उसका अंग्रेजी संस्करण ही उपयोग करने लगते हैं तब भाषाई विवाद संभव है. अंग्रेजी शब्दों का हिंदी उपन्यास अथवा कहानियों में उपयोग मैं अनावश्यक नहीं मानता – अगर इसे विदेशज शब्द के रूप में लिया जाए तो. जहाँ अंग्रेजी शब्द का उपयोग अनिवार्य है उसे देवनागरी में ही लिखा जाए तब हम जैसे रूढ़ी पाठक थोड़ा और सहज महसूस कर पाएंगे. प्रत्युत्तर में इसका एक लॉजिक (मैं इसे logic भी लिख सकता था !) यह हो सकता है कि इसे आम संवाद की दृष्टि से लिखा गया है, बोलते-बतियाते स्वर में. ऐसे में कलम कौशल यही है कि लेखक इसका एक खास संतुलन लेकर चले. ‘मसाला चाय’ इस परिदृश्य में पहली पुस्तक से बेहतर लगी जहाँ लेखक पहले से ज्यादा परिपक्व लगे.
हाँ, कहानियों में ‘अंडी बंडी संडी …’ जैसे बाल वचन का यथारूप प्रयोग उसे अवश्य जीवंत बनाती है. ऐसी कई उक्तियों को बाल्यपन से ढूंढकर निकालना लेखक की पुनः एक उपलब्धि है !
शब्दों का प्रशंशनीय ताना-बाना
कहानी कोई भी लिख सकता है. या तो हिंदी के भारी-भरकम शब्द फेंककर या गाहे-बगाहे सुने वाक्यों में साहित्य संशोधन कर. ‘मसाला चाय’ में लेखक की कलम की प्रशंशा इस विषय पर अवश्य होनी चाहिए कि उन्होंने अपनी कहानियों में कई अवसरों पर स्मरणीय और वास्तविक बातें लिखी है. ऐसी बातें जिन्हें ‘युक्तियों’ के तहत बार-बार पढ़ा या साझा किया जा सकता है. [su_pullquote align=”right”]यह कोई चाटूक्ति नहीं कि दिव्य प्रकाश दुबे एक सक्षम शब्दशिल्पी हैं[/su_pullquote]
पुस्तक की एक कहानी ‘केवल बालिगों के लिए’ के इन पंक्तियों पर गौर करें – “एक उम्र होती है जब क्लास की खिड़की से बाहर आसमान दूर कहीं जमीन से मिल रहा होता है और हमें लगता है कि शाम को खेलते-खेलते हम ये दूरी तय कर लेंगे. दूरी तय करते-करते जिस दिन हमें पता चलता है कि ये दूरी तय नहीं हो सकती, उसी दिन हम बड़े हो जाते हैं”.
या ‘Love You Forever’ से इसे पढ़ें – “हम सभी की पहली शादी यूँ ही कभी अकेले में हो जाती है. फालतू में ही हम बैंडबाजे वाली शादी को अपनी पहली शादी बोलते हैं”.
और ‘विद्या कसम’ इसे भी – “मरे हुए की कितनी भी कसम खाओ, कोई फर्क नहीं …”.
गूढ़ अर्थ वाले ऐसे कई दार्शनिक वाक्य आपको उन कहानियों में भी मिल जायेंगे जिसे आप नॉन-सीरियस (non-serious लिखना उचित होगा क्या?) समझते होंगे !
यह कोई चाटूक्ति नहीं कि दिव्य एक सक्षम शब्दशिल्पी हैं.
* आप चाहे तो पूरा संकलन यहाँ पढ़ सकते हैं
अब आते हैं मसाला चाय की कहानियों पर …
कुछ कहानियों में मैं खुद की छवि देखता हूँ, तो कुछ मेरे इर्द-गिर्द की घटनाओं का ब्यौरा है. खैर, मैं ऐसी कोई बात नहीं लिखूँगा जो अब सभी तीसरे पुस्तक-समीक्षा की प्रारंभिक पंक्ति होती है. परन्तु इतना अवश्य है कि आधे से ज्यादा पाठक इसी बात को सत्यापित करेंगे. और पाठक ही अंतिम निर्णायक होते हैं.
अतीत खोजा नहीं, खोदा जाता है – मसाला चाय में दिव्य प्रकाश ने सफलतापूर्वक यही किया है
‘मसाला चाय’ के इक्के-दुक्के कहानियों में आपको उस अबोध बालक (और बालिका भी) की कहानी मिल जाएगी जो कभी आप भी हुआ करते थे. कॉलेज की याद आये तो पुस्तक की सबसे लम्बी कहानी ‘फलाना College of Engineering’ पलटिए. प्रेम के पाती आपको Bed Tea, Love You Forever इत्यादि में मिल जाएँगे. लड़कपन की बात ‘केवल बालिगों के लिए’ में तो किशोर कहानी ‘Time’, ‘Ruby Spoken English Class’ आपको शुरू से अंत तक बांधे रखेंगे.
ग्यारह कहानियों के इस संकलन के लिए इतना अवश्य कहूँगा कि अतीत खोजा नहीं है, खोदा जाता है – मसाला चाय में दिव्य प्रकाश ने सफलतापूर्वक यही किया है !
यह पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी. समय मिले तो अवश्य पी डालिये – यह कतई ठण्डी चाय नहीं है !
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Topics Covered : Masala Chai by Divya Prakash Dubey, Book Review Masala Chai